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शिवत्व

sanjeevani
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शिवत्व

ह्रदय बहुत बेचैन था उसका फिर पहले की भांति ….
ना जाने कैसा ह्रदय दे दिया था ईश्वर ने उसे किसी के भी दर्द का एहसास उसके दर्द का एहसास हो जाता था ,
आज फिर किसी के दर्द को महसूस कर रही थी वो ,
उसके बचपन  की दोस्त ज्योत्सना , प्रेम विवाह किया था उसने ,
अनुष्का को आज भी याद है वो दिन जब वो ज्योत्सना को दुल्हन के जोड़े में देख कर देखती रह गयी थी।
विदाई के पल उसे कुछ समझ ही नहीं आया की वो अपनी मित्र को क्या दे ,
कुछ खास तो दे न सकी अपनी लिखी कुछ दुआएं उसके नाम कर दी “एक कविता ज्योत्सना के नाम ” ।
और ज्योत्सना अपने घर चली गयी । समय पर लगा कर उड़ता चला गया अनुष्का भी ब्याह करके अपने घर की हो गयी , परन्तु पुरानी यादों को कभी न भुला सकी अनुष्का , जीती रही अपना भूत वो अपने वर्तमान के साथ और भविष्य के लिए देखे हर सपने में उसे अपने हर अपने को साथ पाने का स्वप्न भी साथ संजोये रखा । हमेशा पुराने लोगों के साथ ही चलती रही नए लोग जीवन में आये तो पर वो स्थान बना नहीं सके ।
विवाह के कुछ आठ वर्षों बाद अचानक उसे ज्योत्सना का नंबर मिला तो वो ख़ुशी से फूली न समाई और उसने तुरंत ही अपनी मित्र को फ़ोन मिला दिया और उधर से ज्योत्सना ;
हेल्लो
कौन ?
मैं अनुष्का पहचाना ।
कैसे नहीं पहचानती ज्योत्सना उसे …………
अनुष्का सपनो खुशियों और मुस्कराहट का दूसरा नाम जो थी , उसके साथ रहने वाले के दुःख न जाने कहाँ गायब हो जाते थे और ज्योत्सना चिल्ला पड़ी कहाँ मर गयी थी तू , तुझे कभी मेरी याद नहीं आयी ।
अनुष्का – “याद न आती  तो तेरा नंबर ढूंढ कर  मैं तुझे फ़ोन कर रही होती अब शिकायतें बंद कर और ये बता की हम कब मिल रहे हैं “?
और ज्योत्सना बिना रुके बोल पड़ी कल मिलते हैं|
कल पुरानी  यादों के साथ कितनी जल्दी आज बन गया और बस ज्योत्सना अनुष्का के पास पहुंचने ही वाली थी……..
कुछ ३५ मिनट बाद ……….
ये सब क्या है ज्योत्सना ? ये क्या हाल बना रखा है ? हुआ क्या है आखिर ?
न जाने कितने ऐसे सवालों ने ज्योत्सना को घेर लिया , और शायद ज्योत्सना चाहती भी यही थी …………
ह्रदय में बरसों से भरी दर्द की गंगा उसने अनुष्का के सामने यूँ उड़ेल दी मानो शिव स्वयं उसके सन्मुख आ गए हो , और उसके जीवन का विष अपने कंठ में धारने को तत्पर हो |
और सुनकर अनु शब्द विहीन हो गयी …………
शायद यही दर्द था जो अनु महसूस कर रही थी |
भरी भीड़ में भी ये एहसास ज्यूँ वो दोनो अकेली हों और कोई एहसास नहीं , मन की सुन्नता और बस मन की सुन्नता |
अनु उसका दर्द सुनकर कुछ कह न सकी और उसे गले लगा कर विदा ले लौट आयी गर कुछ कर सकी थी तो शायद बस इतना की ज्योत्सना के अकेलेपन के एहसास को ख़त्म कर आयी थी वो ………..
अनु घर पर थी संभव को खाना दे रही थी परन्तु संभव से परे उसका ह्रदय तो बस ज्योत्सना में लगा था , कब सोचते और घर के कार्य निपटाते दोपहर से रात हो गयी |
रात्रि की नीरवता ने उसके मष्तिष्क को पुनः झंझोर दिया , ” क्या ये वही ज्योत्सना थी अपने भाइयों की लाडली ज्योति ” | पुनः उसकी शादी अनु के मष्तिष्क पटल पर छायांकित हो गयी | सिया सी लग रही थी लग रहा था अपने राम के वरन को जा रही हो जयमाल लिए , और स्टेज पर अनुराग भी ज्योत्सना के अनुराग में लिप्त से लग रहे थे , सब कह रहे थे क्या राम सिया सी जोड़ी है ,
क्या ज्योत्सना के जीवन का वनवास उपर्युक्त कथन का ही परिणाम था ?
क्या इसीकारण दो अगाध प्रेम करने वाले एक दूसरे से अलग थे ?
क्या इसीको नज़र लग्न कहते हैं की लोगों के एक कही ने ऐसा दंश दिया की आज अनुराग और ज्योत्सना के बीच कुछ भी सही नहीं |
बस जीवन है इसलिए जिए जा रहे हैं दोनों अपने द्वारा जन्म दिए दो बच्चों और अपने माता पिता के जीवन के लिए …………..
कितना कुछ हो गया अनुराग नशे के आदी हो गए , काम काज से विरक्त , न ज्योत्सना की परवाह और न अपने अंशों की , जो पिता से तो परिचित थे पर पिता के प्रेम से नहीं |उनका परिचय तो बस पिता की उद्विग्नता से हुआ था …….
रात कब यह सब सोचते कट गयी अनुष्का को समझ ही न आया , गर कुछ समझ आया तो बस इतना की उसे ज्योत्सना के जीवन में खुशियों के कुछ पल तो डाल ही देने हैं यही सोच कर उसने सुबह होते ही ज्योत्सना को फिर फ़ोन मिला दिया |
क्या कर रही है यार ? चल आज तू घर आ जा साथ खाना खायेंगे …….
और उधर एक मौन ………
क्या हुआ ज्योति कुछ बोल तो आ रही है न ………
ज्योत्सना ,” देखती हूँ , समय मिलेगा तो ज़रूर आऊंगी |”
अनुष्का फ़ोन रख कर खाना बनाने में लग गयी , ऐसा लग रहा था मानो उसे एहसास हो की ज्योति ज़रूर आएगी ……..
और कुछ दो घंटे बाद डोर बेल की आवाज़ के प्रत्युत्तर में अनु चिल्ला पड़ी आई ज्योति एक मिनट रुक |
दौड़ कर आयी अनु और दरवाज़े के बहार खड़ी अपनी दोस्त को खींच के अन्दर बुला लिया |
आजा तू बैठ मैं बस पानी ले कर आई ………….
ज्योत्सना खुश थी अनु की ख़ुशी और उसकी वही चंचलता और चपलता देख कर |
अनु पानी लेकर आयी और फिर बोली चल पहले अपने पहले वाले कॉलेज चलते हैं , आज सबसे मिलेंगे ……..
फिर लौट कर खाना खिलाती हूँ तुझे तेरा फेवरेट इडली डोसा बनाया है मैंने ……
और दोनों सहेलियां हाँथ पकड़ कर अपने पुराने स्कूल पहुँच गयी , वो क्रीडा स्थल , वो झूले , वो पेड़ , वो कोरिडोर सब कितना अपना था , और यहाँ होना शायद ज्योत्सना का एक सपना था |
समोसे वाले दादा के समोसे , गुप्ता जी की भेल पूरी,और काले वाले चूरन  ने फिर से ज्योत्सना के जीवन को पल भर को फिर से वैसा ही चटपटा कर दिया था और छीन कर खा गयी थी वो अनु के हिस्से का अमरक भी |
दोनों अपना बचपन जीकर वापस चले आये और फिर इडली भी तो ज्योति का इंतज़ार कर रही थी |
ज्योति ,” अनु अब पेट में जगह तो है नहीं पर तूने चीज़ ही ऐसी बनाई है , जल्दी खिला और अब जाने दे |”
और खाना खाने के बाद ज्योति अपने घर लौट गयी |
एक रात अनुष्का ने ज्योत्सना के दुःख के साथ काटी थी और आज की रात ज्योत्सना इस ख़ुशी के साथ काटने वाली थी की की कम से कम अनु जीवन के इन कठोर पलों से दूर है ………
बहुत खुश थी ज्योति , अनु और उसके बेटे संकल्प से मिल कर ?
सोचने लगी कितना सुखी परिवार है पति पत्नी और एक प्यारा सा बेटा |
निद्रा की गोद ने का उसे थपकी दे कर सुला दिया उसे पता ही न चला पर लाख परेशानियों के बाद भी आज की रात उसके जीवन की एक सुखी रात थी |
दिन बीतते गए दोनों दोस्तें बीच बीच में मिलती | अनुष्का के कारन ज्योत्सना ने घर से बहार निकलना और आत्मनिर्भर बनने के प्रयत्न शुरू कर दिए और धीरे धीरे उसने स्वयं को कार्य में व्यस्त कर लिया और कुछ वाह्य खुशियों में भी ………….
बार बार ज्योत्सना , अनुष्का और उसकी खुशियों को सोच , खुश हो रही थी ……….
समय बीतता रहा , कब दो वर्ष बीत गए पता ही न चला ज्योत्सना को काम और जीने का सहारा मिल गया और धीरे धीरे उसने अनुष्का से पाए प्यार से सीख कर अनुराग को भी बदल डाला |
आज ज्योत्सना को अपने काम से मिस्टर सिंह के वहां जाना था ,
जैसे ही मिसेस सिंह ने दरवाज़ा खोला ज्योत्सना अवाक् रह गयी ये तो एकता थी उसके बचपन की सहेली , अनुष्का और ज्योत्सना की एक और हमजोली |
ओहो तो आप हैं मिसेज़ सिंह मैडम …….
कैसी कट रही है ? क्या चल रहा है ?
फिर वही पुराने दोस्तों वालें पुराने सवाल ……….
और फिर चकल्लस शुरू हो गयी ………
और ज्योत्सना बोल पड़ी ,” यार अगर अनुष्का नहीं होती तो जाए मेरा क्या होता ? और पूरा पिछला दो वर्ष उसने एकता के सामने खोल कर रख दिया |”
ज्योत्सना बोले जा रही थी यार अनु ये अनु वो, क्या इडली बनती है , क्या मस्त जीवन है उसका
एकता चुप चाप सुन रही थी
…………………………………………..दोनों मिया बीबी एक जैसे ही हैं तभी इतनी मस्ती चढ़ी है उसे|
और इस एक वाक्य ने एकता की चुप्पी तोड़ ही दी ,”पागल हो गयी है क्या तू ज्योत्सना , दो साल से तू अनु के साथ है और तुझे पता नहीं की वो जीवन के किस भद्दे रूप से गुज़री है | उसके पति की मृत्यु उसके विवाह के दो साल बाद ही हो गयी थी , आत्महत्या की थी उन्होंने , तब संकल्प गर्भ में था अनु के |”
ज्योत्सना के पैरों के नीचे से तो ज़मीन ही निकल गयी ……..
क्यों !
क्यों की थी आत्महत्या …?
उन्हें शक था की अनु के जीवन में कोई और है , पहले वो अनु को मारते पीटते रहे , और जब उन्हें कुछ और समझ नहीं आया तो बिना सच जाने उन्होंने…………|
ओह गाड……….
मैं क्यूँ नहीं समझ सकी हर बार उसके मौन को ………
हर बार जब भी मैं जीजाजी से मिलाने की जिद करती जवाब में बस चुप्पी मिलती और साथ में जो मुस्कराहट मिलती वो तो बस मुझे दुखी न करने को होती |
मैं क्यूँ न समझ सकी उसके उन आंसुओं को जो मेरी तकलीफ में मुझसे पहले निकल आये थे |
मैं क्यूँ न समझ सकी उसके घर के सन्नाटे को जिसमे संकल्प की अवाज़ के अतिरिक्त और कुछ नहीं था |
ओह अनु ये क्या किया मैंने मैं तेरे सामने कहती रही और तू अपने दुखों को भूल मेरे दुखों को सुखों में बदलने में लगी रही |
शायद यही है दोस्ती , यही है भोलापन और यही है शिवत्व जो खुद गरल पान कर दूसरों को बस प्रसन्नता बांटता है |
शिव से अगाध प्रेम करने वाली अनुष्का आज मेरे लिए शिव सरीखी हो गयी |




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