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पर जीने की कुछ शर्तें हैं |

sanjeevani
sanjeevani
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रोज़ प्रात के साथ
जन्म दे कर मुझे
अपने प्रेम का सिंचन कर ,
वो पल्लवित करता है ह्रदय को मेरे ,
और ह्रदय में लाखों करोड़ों स्वप्न ,
लाखों आशाएं
कुछ कर गुजरने की चाहें
और जैसे ही मैं स्वप्नों को सच करने की
चाह में
उठाती हूँ प्रथम कदम
ये मान की ये घर मेरा है ,
जी सकती हूँ खुल कर यहाँ ,
अपने अनुसार
सजा सकती हूँ अपने निकेतन को ,
वो आकर
मेरी लगाई समस्त
पेंटिंग्स हटा देता है ,
क्यूंकि वो उसे पसंद नहीं
किसी का रंग ,
किसी का चित्र ,
किसी के भाव ,
और
किसी का आकार ,
और दिला देता है मुझे एहसास
की घर मेरा है
मैं उसे सजा सकती हूँ
पर तब
मैं अपने ह्रदय से अपने घर को सजाने की
अपनी कल्पनाएँ निकाल फेंकू
और
सजा लूं अपने ह्रदय में वो सब जो उसके ह्रदय में हैं ,
बदल लूं खुद को
उसकी भावनाओं के अनुसार
हाँ
हक़ मिला है
जीने का मुझे
पर जीने की कुछ शर्तें हैं

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